संवाददाता रमेश राम लोहाघाट/ चम्पावत।
लोहाघाट। नदियों पर लगातार मंडराते खतरों से नदियां संकट में हैं। नदियां तमाम प्राणियों एवं धरती की जीवन रेखा है इसलिए उनको बचाना हमारा दायित्व है। आज नदियां जिस तरह प्रदूषित की जा रही हैं उससे तो लगता हैं एक दिन उनका अस्तित्व ही मिट जाएगा। कई छोटी –छोटी नदियां तो विलुप्तता की कगार पर है ये खतरे प्राकृतिक नहीं बल्कि मानवजनित हैं।
लेकिन गंगा के वास्तविक दर्शन से पता चलता है कि गंगा किस दौर से गुजर रही है। गंगा की सफाई के लिए केंद्र की पूर्ववर्ती सरकारें करोड़ों रुपए पानी की तरह बहा चुकी है किन्तु नतीजा शून्य ही रहा। केंद्र में भाजपा की सरकार बनते ही गंगा की सफाई के लिए नई– नई योजनाएं कागजों पर उतरती जा रही हैं। कौन– सी योजना कितनी चमत्कारिक साबित होगी इसके बारे मे भी कुछ कहा नहीं जा सकता। यही नहीं नदियों के किनारों पर भी हो रहे अतिक्रमण से भी नदियां संकरी हो चुकी है। औद्योगिक इकाईयों एवं नदियों के किनारे बसे शहरों से निकलने वाला कूड़ा –कचरा रसायन व सीवर का गंदा पानी सब नदियों पर ही समाहित किया जा रहा हैं। नदियों को उनका पानी प्राप्त मात्रा में न मिलने के कारण तमाम तरह की गंदगी बढ़ती ही जा रही है।

इतना सबकुछ होते हुए देखकर भी हम सचेत नहीं हो रहे हैं। कुछ गैर –सरकारी संगठन व सामाजिक संस्थाएं नदियों को बचाने के लिए अपने–अपने स्तर से प्रयासरत हैं। किन्तु जब तक आम नागरिक जागरूक नहीं होगा तब तक नदियों को यह सबकुछ झेलना ही पड़ेगा। सरकार को चाहिए कि केवल एक– दो नदियों की सफाई नहीं बल्कि हर नदी की सफाई का बीड़ा उठाए। आखिर कब तक ऐसे नदियों का दम घोंटते रहेंगे हम? नदियों पर बांध बने जरूर लेकिन छोटे –छोटे, ताकि उनका प्रभाव अनवरत बना रहें। लेकिन गंगा प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की स्थापना कर अरबों रुपए खर्च कर गंगा सफाई का ढोल पीटकर मां गंगा को प्रदूषित कर रहे हैं।
माँ गंगा के दर्शन मात्र से ही मनुष्य को सहस्त्रों जन्मों के पापों से मुक्ति मिल जाती हैं व साथ ही गंगा में स्नान करने से जो अतिरिक्त आनंद मिलता हैं उसकी केवल कल्पना ही की जा सकती हैं उसे शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता है।
युगों –युगों से देवताओं तथा कलयुग में स्वार्थी मनुष्यों के पापों को धुलती पाप नाशनी माँ गंगा को आज मनुष्य ने इतना गंदा कर दिया है कि आज ऐसा प्रतीत होता हैं कि गंगा गंगा धारा नहीं बल्कि शिव की जटाओं में रहकर आंसू बहा रही हैं।











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