महेश पारिक।
प्रयागराज। किन्नर अखाड़े के संस्थापक ऋषि अजय दास उर्फ कंप्यूटर बाबा ने किन्नर अखाड़े की आचार्य महामंडलेश्वर लक्ष्मी त्रिपाठी व हाल ही में किन्नर अखाड़े की महामंडलेश्वर बनी ममता कुलकर्णी को अखाड़े से निष्कासित कर दिया हैजारी पत्र में ऋषि अजय दास उर्फ कंप्यूटर बाबा ने कहा कि किन्नर अखाड़े का गठन वर्ष 2015,16 में उज्जैन में उन्होंने किया था। आचार्य महामंडलेश्वर लक्ष्मी त्रिपाठी द्वारा देशद्रोह की आरोपित ममता कुलकर्णी को महामंडलेश्वर बनाए पर दोनों को निष्काशित किया जाता है। पत्र में उन्होंने ओर क्या लिखा पढ़िए। 
मैं किन्नर अखाडे का संस्थापक होने के नाते आज आपको यह विदित करते हुए जानकारी देता हूं कि किन्नर अखाड़े की 2015-16 उज्जैन कुंभ में मेरे द्वारा नियुक्त आचार्य महामंडलेश्वर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी को मैं आचार्य महामंडलेश्वर किन्नर अखाड़ा के पद से मुक्त करता हूँ। शीघ्र इन्हें लिखित सूचना दे दी जावेगी, क्योंकि जिस धर्म प्रचार-प्रसार व धार्मिक कर्मकांड के साथ ही किन्नर समाज के उत्थान इत्यादि की आवश्यकता से उनकी नियुक्ति की गई थी. यह उस पद से सर्वदा भटक गए है. इन्होंने मेरी बिना सहमति के जूना अखाड़ा के साथ एक लिखित अनुबंध 2019 के प्रयागराज शुभ में किया। जो की अनैतिक ही नहीं अपितु एक प्रकार की 420 है। बिना संस्थापक के सहमति एवं हस्ताक्षर के जूना अखाड़ा एप किन्नर अखाड़ा के बीथ का अनुबंध विधि अनुकूल नहीं है। अनुबंध में जूना अखाने ने किन्नर अखाड़ा संबोधित किया है इसका अर्थ है कि किन्नर अखाड़ा 14 अखाड़ा उन्होंने स्वीकार किया है। तो इसका अर्थ यह है कि सनातन धर्म में 13 नहीं अपितु 14 अखाड़े मान्य है. यह बात अनुबंध में स्वयं सिद्ध है।
आचार्य महामंडलेशवर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी तथा कथित ने असवैधानिक ही नहीं अपितु सनातन धर्म व देश हित को छोड़कर ममता कुलकर्णी जैसे देशद्रोह के मामले में लिप्त महिला जी की फिल्मी ग्लैमर से जुड़ी हुई है. उसे बिना किसी धार्मिक व अखाड़े की परपरा को मानते हुए वैराग्य की दिशा के बजाय सीधे महामडलेश्वर की उपाधि व पट्टा अभिषेक कर दिया। जिस कारण से मुझे आज बेमन से मजबूर होकर देश हित सनातन एवं समाज हित में इन्हें पद मुक्त करना पड़ रहा है।
किन्नर अखाडे के नाम का अवैधानिक अनुबंध जो जूना अखाडे के साथ कर किन्नर अखाडे के समी प्रतीक चिन्हों को भी क्षत-विक्षत किया गया है। ये लोग ना तो जूना अखाड़े के सिद्धांतों को के अनुसार चल रहे है, ना किन्नर अखाड़े के सिद्धांतों के। उदाहरण के लिए किन्नर अखाडे के गठन के साथ ही वैजन्नती माला गले में धारण कराई गई थी, जो की श्रृंगार की प्रतीकात्मक है परंतु इन्होंने उसे त्याग कर रुद्राक्ष की माला पारण कर ली। जो कि सन्यास का प्रतीक है और सन्यास बिना मुंडन संस्कार के मान्य नहीं होता। इस प्रकार यह सनातन धर्म प्रेमी व समाज के साथ एक प्रकार का छलावा कर रहे हैं। अत आज मेरे द्वारा प्रेस वार्ता के माध्यम से यह सब जानकारी जनहित में व धर्महित में देना आवश्यक है।











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