होली है एकता और भाईचारे का प्रतीक

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संवाददाता रमेश राम लोहाघाट/ चम्पावत।
कुमाऊं मंडल। भारतीय पर्व –परम्परा में होली एकता और भाईचारे का प्रतीक हैं। आंदोल्लास का सर्वश्रेष्ठ रसोत्सव हैं। मुक्त स्वछंद परिहास का त्यौहार है। नाचने गाने हसीं ठिठौली और मौज मस्ती की त्रिवेणी है। सुप्त मन की कंदराओं में पड़े ईर्ष्या –द्वेष ,राग– विराग जैसे निम्न विचारों को दूर करने का सुंदर अवसर भी है। होली बसंत ऋतु का यौवनकाल है। गर्मी के आगमन का सूचक है। वनश्री के साथ– साथ खेतों एवं हमारे तन मन की श्री भी फागुन के ढलते– ढलते संपूर्ण आगा से खिल उठती हैं फागुन के सूर्य की ऊष्मा को प्रियालिंगम –मधु माधुर्य स्पर्श बताते हुए कहा कि सहस्त्र मधु मादक स्पर्शो से आलंगित कर रही है।   

इन किरणों से फागुन के इस बसन्ती प्राप्त को सुगंधित स्वर्ग में आह्लादित कर दिया है। होली के साथ अनेक दंत कथाओं का सम्बंध जुड़ा है। होली के बीच में एक दो अथवा होली की समाप्ति काली मिर्च इलायची वाली चाय का मजा अलग ही नशीला होता हैं।
एकादशी के दिन से ठाडि होली प्रारंभ होती हैं गोलियार नहा– धोकर पंडित जी द्वारा बताए गए शुभ मुहूर्त के अनुसार चीर के लिए लाए गए रंग बिरंगे कपड़ों को प्रतिष्ठा कराकर सब में रंग छिड़का जाता हैं। फिर निगाले का गोल– गोल झंडा से बनाकर नए प्राण प्रतिष्ठा किए गए चीर के लिए लाए गए वस्त्र को लंबे –लंबे टुकड़े कर चीर के मूंडे पर बांधे जाते हैं। मंत्रोच्चार के साथ तब खड़ी होली आरम्भ की जाती हैं।
इस प्रकार एकादशी में देवताओं की पूजा से संबंधित होलिया गाई जाती हैं साथ ही सब कुछ भूलकर रंगों में सराबोर हो जाने मस्ती में झूमने गाने, आपसी बैर– भाव भूलकर सबको गले लगाने का त्यौहार है होली। बसंत के आगमन का स्वागत और फाल्गुनी फ़ुवारो से तर, बच्चे –बड़े, नर–नारी, समवेत रूप से इसमें सम्मिलित रहते हैं। लगता हैं कि जैसे प्रकृति स्वयं बसन्ती फूल से श्रृंगारित होकर झुमने लगी हों। उत्तराखंड होली का एक अलग ही महत्व है एक सप्ताह पूर्व से ही होली की तैयारी शुरू हो जाती हैं। गांव के नौजवानों की टोलिया गले में ढोलक –डाले –ढोलक की थापों पर नाचते गाते घर –घर गांव– गांव जाना होली गाना दान में मिली साम्रगी से होलिका दहन के दिन सामूहिक भोज अपने आप में किसी रोमांच से कम नहीं हैं। होली का दान मन मांगना और गाते हुए आशिश भी एक कला है। 
होलियार इस मतवाले, रंगीले पर्व को बरसो– बरस तक अपने बच्चों से मनाते रहने की कामना से संबंधित होलिया गाते हैं। इस प्रकार बारह –एक –बजे होली समाप्त कर होलियार अपने होली के कपड़ों को सुखाने, प्रेस करने, रंगने में व्यस्त हो जाते है। होली पोशाक में सफेद चूड़ीदार पजामा, सफेद मिजाई और सफेद ही पाग (एक विशेष प्रकार की पगड़ी) तैयार की जाती हैं। साथ में सफेद पेटी लंबे –लंबे रुमाल बहुत से होलियारों के बदन पर शीशे लगे होते हैं। रंगीले होलियारों के होली नाचने गाने के लिए एक गोल घेरे में नृत्य करते रहते हैं। ओर लोग एक बार गाते हैं , होली की पंक्ति समाप्ति पर दूसरी ओर गाने लगते हैं। इसी तरह पूरी होली तक यह क्रम चलता रहता हैं। समाप्ति पर होई– थक्का –थोई कहकर होली समाप्त कर दी जाती हैं।

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